मूर्ति पूजा मन की एकाग्रता के लिए की जाती है . एकाग्रता ध्यान या योग से होती है .ध्यान में दो प्रकार की बातें आती हैं . १. परमात्मा में मन को लगाना .२.शरीर की प्रक्रिया को नियोजित करना .परमात्मा में ध्यान लगाने की स्थिति समाधि कहलाती है और ऐसे में मनुष्य निद्रा में चला जाता है . शरीर की प्रक्रिया को नियोजित करना दो प्रकार से होता है .१. ज्ञान २. विज्ञान .विज्ञान जड़ या प्राकृतिक पदार्थों का विषय है जिसमे भूमि जल अग्नि व्योम एवं वायु का पारस्परिक सहयोग है इसकी मात्रा नियत है इसलिए इसका ह्रास नहीं होता .नदीनाम समुद्रम एव अभिमुखान्ति
Yathaa nadeenaam bahavo’mbuvegaah
Samudramevaabhimukhaah dravanti;
Tathaa tavaamee naralokaveeraah
Vishanti vaktraanyabhivijwalanti.
Verily, just as many torrents of rivers flow towards the ocean, even so these heroes of the
world of men enter Thy flaming mouths.
Arjuna sees all the warriors, whom he did not wish to kill, rushing to
death. He knows now that the Lord has already destroyed them, so why should he worry about the
inevitable.
[ गीता ], समुद्र की ओर नदियाँ जाकर फिर वर्षा द्वारा अपना स्वरुप लेती हैं . ज्ञान के अंतर्गत आत्मा का विषय आता है जिसके लिए ऋषियों ने ग्रंथों में उल्लेख किया है .ज्वलनं पतंगा विशन्ति नाशाय
Yathaa pradeeptam jwalanam patangaa
Vishanti naashaaya samriddhavegaah;
Tathaiva naashaaya vishanti lokaas
Tavaapi vaktraani samriddhavegaah.
As moths hurriedly rush into a blazing fire for (their own) destruction, so also these
creatures hurriedly rush into Thy mouths for (their own) destruction.
[ गीता ], इसमें पतंगों के जलने के बाद जड़ पंचतत्व नष्ट नहीं होता किन्तु आत्मा अलग हो जाती है , यह आत्मा परमात्मा का वह अभिन्न अंग है जिसके लिए लिखा है परबस जीव स्वबस भगवंता [ रामचरितमानस ] . यहाँ यह समझने के लिए आप अपना उदाहरण लीजिये . अपने हाथ की पांचो उँगलियों को क्रमशः बर्फ, कम जमी बर्फ, ठंडा पानी ,सादा पानी एवं उबलते हुए पानी में डालिए . आपको अलग अलग महसूस हो रहा है किन्तु ऊँगली को कुछ नहीं . इसलिए आप चोटिल ऊँगली को ठन्डे से गर्म एवं गर्म से ठन्डे पानी में डालेंगे , तानहं क्षिपामि आसुरिशु योनिषु
Taanaham dwishatah krooraan samsaareshu naraadhamaan;
Kshipaamyajasram ashubhaan aasureeshweva yonishu.
These cruel haters, the worst among men in the world,—I hurl all these evil-doers for
ever into the wombs of demons only.
Aasureem yonimaapannaa moodhaa janmani janmani;
Maamapraapyaiva kaunteya tato yaantyadhamaam gatim.
Entering into demoniacal wombs and deluded birth after birth, not attaining Me, they
thus fall, O Arjuna, into a condition still lower than that!
[ गीता ]. अब इस बात को कैसे समझा जाय की परमात्मा ही कर्ता एवं भोक्ता है . शुभ संकेत अगर आपको हो रहे हैं तो आपको प्रशन्नता दायक कोई कार्य होगा इसका मतलब एक ही शक्ति आपको प्रशन्नता दिलाने के लिए प्रयास कर रही है एवं सूचित भी कर रही है .ठीक यही स्थिति अपशकुन होने पर उल्टा होगा और आप उसको रोक नहीं सकते .द्वा सुपर्णा सयुजा सखाया समानं वृक्षं
dvā suparṇā sayujā sakhāyā samānaṃ vṛkṣaṃ pari ṣasvajāte |
tayoranyaḥ pippalaṃ svādvattyanaśnannanyo abhi cākaśīti ||
yatrā suparṇā amṛtasya bhāghamanimeṣaṃ vidathābhisvaranti |
ino viśvasya bhuvanasya ghopāḥ sa mā dhīraḥ pākamatrā viveśa ||
yasmin vṛkṣe madhvadaḥ suparṇā niviśante suvate cādhi viśve |
tasyedāhuḥ pippalaṃ svādvaghre tan non naśad yaḥpitaraṃ na veda ||
[ ऋग्वेद ]यहाँ पर हर शब्द एक वचन का बोध कराता है यानि एक शरीर में दो प्रकार के गुण वाला परमात्मा रहता है जो एक ही है भिन्न भिन्न यानि दो नहीं अथवा यही आत्मा भी है .इससे स्पष्ट हो गया कि हर स्थिति में परमात्मा रूप आत्मा को एकाग्रता के लिए मूर्ति पूजा में लगायें तथा अपना शाश्त्र सम्मत नियत कर्म ही करें .
Yathaa nadeenaam bahavo’mbuvegaah
Samudramevaabhimukhaah dravanti;
Tathaa tavaamee naralokaveeraah
Vishanti vaktraanyabhivijwalanti.
Verily, just as many torrents of rivers flow towards the ocean, even so these heroes of the
world of men enter Thy flaming mouths.
Arjuna sees all the warriors, whom he did not wish to kill, rushing to
death. He knows now that the Lord has already destroyed them, so why should he worry about the
inevitable.
[ गीता ], समुद्र की ओर नदियाँ जाकर फिर वर्षा द्वारा अपना स्वरुप लेती हैं . ज्ञान के अंतर्गत आत्मा का विषय आता है जिसके लिए ऋषियों ने ग्रंथों में उल्लेख किया है .ज्वलनं पतंगा विशन्ति नाशाय
Yathaa pradeeptam jwalanam patangaa
Vishanti naashaaya samriddhavegaah;
Tathaiva naashaaya vishanti lokaas
Tavaapi vaktraani samriddhavegaah.
As moths hurriedly rush into a blazing fire for (their own) destruction, so also these
creatures hurriedly rush into Thy mouths for (their own) destruction.
[ गीता ], इसमें पतंगों के जलने के बाद जड़ पंचतत्व नष्ट नहीं होता किन्तु आत्मा अलग हो जाती है , यह आत्मा परमात्मा का वह अभिन्न अंग है जिसके लिए लिखा है परबस जीव स्वबस भगवंता [ रामचरितमानस ] . यहाँ यह समझने के लिए आप अपना उदाहरण लीजिये . अपने हाथ की पांचो उँगलियों को क्रमशः बर्फ, कम जमी बर्फ, ठंडा पानी ,सादा पानी एवं उबलते हुए पानी में डालिए . आपको अलग अलग महसूस हो रहा है किन्तु ऊँगली को कुछ नहीं . इसलिए आप चोटिल ऊँगली को ठन्डे से गर्म एवं गर्म से ठन्डे पानी में डालेंगे , तानहं क्षिपामि आसुरिशु योनिषु
Taanaham dwishatah krooraan samsaareshu naraadhamaan;
Kshipaamyajasram ashubhaan aasureeshweva yonishu.
These cruel haters, the worst among men in the world,—I hurl all these evil-doers for
ever into the wombs of demons only.
Aasureem yonimaapannaa moodhaa janmani janmani;
Maamapraapyaiva kaunteya tato yaantyadhamaam gatim.
Entering into demoniacal wombs and deluded birth after birth, not attaining Me, they
thus fall, O Arjuna, into a condition still lower than that!
[ गीता ]. अब इस बात को कैसे समझा जाय की परमात्मा ही कर्ता एवं भोक्ता है . शुभ संकेत अगर आपको हो रहे हैं तो आपको प्रशन्नता दायक कोई कार्य होगा इसका मतलब एक ही शक्ति आपको प्रशन्नता दिलाने के लिए प्रयास कर रही है एवं सूचित भी कर रही है .ठीक यही स्थिति अपशकुन होने पर उल्टा होगा और आप उसको रोक नहीं सकते .द्वा सुपर्णा सयुजा सखाया समानं वृक्षं
dvā suparṇā sayujā sakhāyā samānaṃ vṛkṣaṃ pari ṣasvajāte |
tayoranyaḥ pippalaṃ svādvattyanaśnannanyo abhi cākaśīti ||
yatrā suparṇā amṛtasya bhāghamanimeṣaṃ vidathābhisvaranti |
ino viśvasya bhuvanasya ghopāḥ sa mā dhīraḥ pākamatrā viveśa ||
yasmin vṛkṣe madhvadaḥ suparṇā niviśante suvate cādhi viśve |
tasyedāhuḥ pippalaṃ svādvaghre tan non naśad yaḥpitaraṃ na veda ||
[ ऋग्वेद ]यहाँ पर हर शब्द एक वचन का बोध कराता है यानि एक शरीर में दो प्रकार के गुण वाला परमात्मा रहता है जो एक ही है भिन्न भिन्न यानि दो नहीं अथवा यही आत्मा भी है .इससे स्पष्ट हो गया कि हर स्थिति में परमात्मा रूप आत्मा को एकाग्रता के लिए मूर्ति पूजा में लगायें तथा अपना शाश्त्र सम्मत नियत कर्म ही करें .
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