वेद मंत्र ही जीवन के आधार हैं
ब्र्ह्म वर्म ममान्तरम्
जिस प्रकार इस लोक की जो वस्तुएं दिखती है वह सब पर्यावरण के अन्तर्गत ही जीवित हैं
अंतरिक्ष यानी तारालोक भी कुछ अवश्य है किन्तु अप्राप्त और कौन जानता है स्वर्गलोक के बारे में ।
किसी भी प्राणी का सम्पूर्ण जीवन भोगयुक्त होकर अगले जीवन की भोगवस्तु तैयार करता है
शक्नोति इह एव य: सोढुम् शरीरविमोक्षणात्
इस शरीर के द्वारा किया गया कार्य ही अगली योनि निर्धारित करता है और पिछले भोग को भोगकर जो निकल गया वही मुक्त है
अर्थात सम्पूर्ण पर्जन्य या वातावरण तब तक ही जीवित है तथा अपनी आत्मा भी ।।
मुक्तों को छोड़कर बाक़ी सब नष्ट हो रहा है ।
मुन्च शीर्शक्तया उत कास एनं परुष्परूराविवेशा यो अस्य ।
ये अभ्रजा वातजा यस्य सुष्पो वनस्पतीम्सचतां पर्वतांश्च ।।
विद्मा सरस्य पितरं पर्जन्यम् शत विष्णम
तेना ते तन्वे शं करं पृथिव्याम् ते निशेचनम् बहिष्टे अस्तु बालिति ।।
इसलिए यदि अपनी सुरक्षा नही होगी तो भोगना पड़ेगा किन्तु यदि पर्यावरण की सुरक्षा नही होगी तो सृष्टि नष्ट हो जाएगी ।
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