आती जाती आत्माओं का सत्य कहता है कि मृत्योमुक्षीय अथवा वेदाज्ञानुसार दैवीय गुणों वाले पूर्व मे गए पितर हमारा कल्याण करें किन्तु हम मुक्त हो जांय ताकि
यदा ते विष्णुरोजसा तरीणि पदा विचक्रमे |
आदित ते हर्यता हरी ववक्षतु: ।।
अर्थात अवतारी विष्णु जैसे हमें भी इन्द्र का छोटा भाई न बनना पड़े ।।
इसलिए गीता कहती है कि बुद्धि से ईमानदार व्यवसायी बनो तथा आत्मसुख के लिए लोकसंग्र्ह यानी वैज्ञानिक अथवा प्राकृतिक यानी दैवी यज्ञीय कार्यों को ही सम्पादित करना चाहिए ।।
चूँकि कोई भी प्राणी अकर्ता नही रह सकता तथा सारे कार्य प्राकृतिक गुणों द्वारा ही होते हैं इसलिए शुद्ध बुद्धि द्वारा आत्मा को श्रद्धायुक्त होकर परमात्मा मे लगाकर नियत कार्य करना वेदास्त्रिक दर्शन है ।।
इस कर्म को मोहमुक्त होकर शात्रानुसार आचरण ही धर्म है ।।
गीता सांख्य अथवा तर्क को सुलझाकर ज्ञानविज्ञान में आचरित कर्म सम्पादन को वेदाज्ञानुसार निर्देशित करती है तथा छोटे जलाशय यानी सिर्फ आत्मतत्व को ही ग्रहण करने का आदेश करती है जोकि वास्तविक रूप में अन्तिम लक्ष्य या परिपूर्ण सागर है ।।
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