स्टेज में अथवा कहीं भी उछल-कूद करने वाला तो बन्दर होता है फिर
यो वै तां विद्यान्नामथा स मन्येत पुराणवित ।
जहां जैसा था उसको वैसा जानने वाला और मनगढ़ंत काल्पनिक नही है जो , क्योंकि
शरीरं ब्रह्म प्राविशच्छरीरे ऽधि प्रजापति: ।।
परमात्मा ही शरीरी है यह जानकर मुक्तात्मा रूप
के अनुसार
इंद्रियाणि इंद्रियाणेभ्य:
अर्थात इंद्रियों का काम इंद्रियों के लिए है इसमे ही वर्तता है वह ब्रह्मचारी ही योगी है ।।
ब्रह्मचारीष्णंचरति रोदसी उभे तस्मिन देवा: संमनसो भवन्ति ।
स दाधार पृथ्वींदिवम् च स आचार्य१ तपसा पिपर्ति ।।
वह ब्रह्मचारी जिसमें समस्त देव समाहित हो जाते हैं
वही आत्मतत्व मे रमने वाला योगी है
उसके उपरांत ही वह कर्मयोगी ज्ञानयोगी बुद्धियोगी
भक्तियोगी आदि श्रेणियों मे गोचर होता है ।।
No comments:
Post a Comment