Monday, February 15, 2016

learning vedastra

It is very unfortunate to classify sanskrit into politics or religion . BCE 4 to 5 millennium there was only society of human for welfare of science and spirituality .
तीनों वेदों ( रिग , साम और यजु , अथर्ववेद नही सन्दर्भित ) में राम का ज़िक्र है किन्तु कृष्ण का पत्नियों के साथ शरारती होने का आभास मिलता है ।
भागवत के अनुसार पुरानो को मानने पर वेद बाद में संकलित किए गए व्यासजी द्वारा एक प्रयास है ।
यजुर्वेद रिगवेद के अनुसार अज्ञानी से ज्ञान सीखना मना है . अज्ञान को शूद्र वाचिक कहा गया है ।
वेदों में परमात्मा तत्व के बारे में विचार है प्राप्ति का ज़ोर नहीं बल्कि भोग विलास ( मधुविद्या ) प्राप्ति पर ज़ोर है ।
इसलिए कृष्ण को वेद विरुद्ध ( मधुसूदन ) और गीता को वेद संगत मानना नहीं स्वीकारा जाता ,
रही  बात कृष्ण के   रास और हनुमानजी के सुन्दरकान्- ड के   रासपूर्ण वर्णन की  वह व्यास और वाल्मीकि तथा  सूतजी   [ freeloaders kathavachak ] को deep darkness , vidyayam ratah होने पर संदर्भित माना जा सकता है ।
कुल मिलाकर गीता [ bhagvadgita, not written by vedvyas of course and not By guru shankara as his bhasya on gita is available  ] जीवन ग्रन्थ और वेद मंत्रों को इंसान के ज्ञान से परे मानना चाहिए .
गीता पथ प्रदर्शक और वेदों का ब्रह्मज्ञा- न सम्बन्धी सार है .प्रस्थानत- रयी , ( वेद-उपनिषद , ब्रह्मसूत्- र एवं गीता ) , मे इसका अलग स्थान है और यह उपनिषदों से ऊपर है ।
गीता ज्ञान सही न होने के कारन लोग इसे वेद विरुद्ध मानते है ।
वेदो मे ब्राहमनत्व- एवं क्षत्रित्व- को जाति विषयक नही माना[ Brahmane brahminam kshatray rajanyam , yaj ] और सतीत्व को सबसे ऊपर का तप बताया गया है जिससे पितरों का उद्धार का पूरा श्रेय स्त्री को है ।
अर्जुन को इसलिए कृष्ण भ्रमित कह कर भीष्म कर्ण आदि को मारने को कहते है क्योकि ये शापित होने के कारन निम्न योनि मे जाएगे अत: पितरो का उद्धार सम्भव नही ,
और यही अर्जुन का कहना है जिसे वह स्त्री के दूषित होने को वेद संगत बताता है ।
अधिकांशत: पुराणों को भारतीय इतिहास मानकर यह माना जा सकता है कि वेदों में सांकेतिक रूप से विभिन्न चरित्रों का वर्णन किया गया है ,
किन्तु वेदिक भाषा का पूरा ज्ञान न होने के कारण संस्कृत मे उपनिषद को निदेश माना जाना चाहिए ।
हिन्दू वेद शास्त्रों के अनुसार भगवदप्राप्- ति एवं अध्यात्म को आवेश , शोध एवं व्यवसाय का विषय न बनाकर विज्ञान के माध्यम से जीवन को उच्चतर बनाने तथा अमरता प्राप्त करने ( अविद्यायाम- मृत्युम त्रीत्वा , यजु एवं ईशा उपनिषद ) का ही प्रयास करना चाहिए ।
आत्मा परमात्मा और माया को , मुर्गी अन्डा और दाना जैसा विवाद का विषय बनाना उचित नही है ।
यज्ञेन यज्ञम यजन्ति तानि धर्मानि प्रथमानि अ|सन ।
ते ह नाकम महिमानम सचन्त यत्र पूर्वे साध्या: सन्ति देवा: ।।
अति विचित्र भगवन्त गति ( ramcharitmanas ) के बारे में कृष्ण कहते हैं , एवं ज्ञात्वा कृतं कर्म पूर्वै: अपि मुमुक्षभि: , कुरु कर्म तस्माद एव च ।।
Thou do that sacred deeds only which led earlier divines to heaven .