Wednesday, July 14, 2021

पर्यावरण

 

वेद मंत्र ही जीवन के आधार हैं

ब्र्ह्म वर्म ममान्तरम्

जिस प्रकार इस लोक की जो वस्तुएं दिखती है वह सब पर्यावरण के अन्तर्गत ही जीवित हैं

अंतरिक्ष यानी तारालोक भी कुछ अवश्य है किन्तु अप्राप्त और कौन जानता है स्वर्गलोक के बारे में ।

किसी भी प्राणी का सम्पूर्ण जीवन भोगयुक्त होकर अगले जीवन की भोगवस्तु तैयार करता है

शक्नोति इह एव य: सोढुम् शरीरविमोक्षणात् 

इस शरीर के द्वारा किया गया कार्य ही अगली योनि निर्धारित करता है और पिछले भोग को भोगकर जो निकल गया वही मुक्त है

अर्थात सम्पूर्ण पर्जन्य या वातावरण तब तक ही जीवित है तथा अपनी आत्मा भी ।।

मुक्तों को छोड़कर बाक़ी सब नष्ट हो रहा है ।

मुन्च शीर्शक्तया उत कास एनं परुष्परूराविवेशा यो अस्य ।

ये अभ्रजा वातजा यस्य सुष्पो वनस्पतीम्सचतां पर्वतांश्च ।।

विद्मा सरस्य पितरं पर्जन्यम् शत विष्णम 

तेना ते तन्वे शं करं पृथिव्याम् ते निशेचनम् बहिष्टे अस्तु बालिति ।।

इसलिए यदि अपनी सुरक्षा नही होगी तो भोगना पड़ेगा किन्तु यदि पर्यावरण की सुरक्षा नही होगी तो सृष्टि नष्ट हो जाएगी ।

Saturday, July 10, 2021

राम रजाई

 

राजा दशरथ के पास सूर्यवंशी एक रज़ाई थी जो आने वाले राजाओं को सौंपी जाती थी

विद्वान वक्ता श्री रामकिंकर त्रिपाठी ने रामचरितमानस से उस रज़ाई को यथासम्भव पाठकों के लिए वर्णित किया है ।।


अब अभिलासु एक मन मोरे 

पूजिहि नाथ अनुग्रह तोरे ।

मुनि प्रशन्न लखि सहज सनेहू 

कहेहु नरेशु रजायसु देहू ।।


वशिष्ठ मुनि ने कहा , हे राजन आप जिसे राजा चाहते हैं उसको रजाई दे दीजिए ।।

इस बीच मंथरा ने लंगड़ी लगाई और केकई से बोली


जो असत्य कछु कहब बनाई

तो बिधि देहइ हमहि रजाई ।।


बिना कुछ असत्य के रजाई हमको मिलने से तो रही ।।


सुबह हो गई लेकिन दशरथ जगे नहीं


लोगों ने कहा सुमंत्र से


जाहु सुमंत्र जगावहु जाई 

कीजिहु काज रजायसु पाई ।।


इस प्रकार सुमंत्र ने रजाई दशरथ से लेकर राम के पास प्रस्थान किया


निरखु बदन कह भूप रजाई

रघुकुलदीपहु चले लवाई ।।


अब रजाई राम के पास आ गई 

राम ने पिता से आग्रह किया कि बनवास के बाद मैं रजाई लेकर शीघ्र ही वापस आ जाऊंगा 


आयसु पाय जनमु फल पाई

ऐयहुं वेगिहि होहु रजाई ।।


राम के साथ रजाई सुमन्त्र रथ मे लेकर अयोध्या से निकल चले


पाइ रजायसु नाय सिर रथ अति वेग बनाय 

गयउ जहां बाहेर नगर सीय सहित द्वौ भाय ।।


सुमंत्र ने कोशिश की लेकिन


मेटि जाय नहि राम रजाई

कठिन करम गति कछु न बसाई ।।


राम ने ईश्वर की गति को अकाट्य बताया 


उधर भरत को दुखी देख वशिष्ठ ने कहा कि पिता की आज्ञानुसार भरत तुम रजाई लेकर राज करो


यह सुन समुझ सोच परिहरहू 

सिर धर राज रजायसु करहू ।।

करहु सीस धरि भूप रजाई

है तुम का सब भांति भलाई ।।


लक्ष्मन तो पहले से ही रजाई की रखवाली कर रहे थे


उठ करजोरि रजायसु मांगा 

मनहु बीररस सोवत जागा ।।


भरत ने सबकी तरफ़ से राम से प्रार्थना की


कर विचार जिय देखहु नीके 

 राम रजाइ सीस सबही के ।।

राखे राम रजाइ रुख हम सब कर हित होय ।।

कर विचार मन दीन्ही ठीका

राम रजायस आपन नीका ।।

स्वारथ नाथ फिरे सबहीका

किए रजाइ कोटि विधि नीका ।।


जनक ने कहा, भरत सुबह रजाई की याचना करेंगे 


भोरिहिं भरत पाइहहिं मनसहि राम रजाइ ।।


आखिरकार भरत ने रजाई के बारे मे राम को याद दिलाया


आनेहु सब तीरथ सलिल तेहि कह काह रजाय ।।

अब गोसांइ मोहि देहु रजाई

सेवहुं अवध अवधि भर जाई ।।


राम ने रजाई भरत को सौंप दी और


प्रभु पद पदम वंदि द्वो भाई

चले सीस धरि राम रजाई ।।


जैश्रीराम