Wednesday, March 3, 2021

वेदास्त्र

 कृष्ण ने अर्जुन से कहा ।।

श्रुति वि प्रतिपन्न से हटकर तुमको निश्चयात्मिका बुद्धि की ओर चलना चाहिए अततुम वेदवाद से हटकर अमृतज्ञान का आश्रय लो 


सीताजी ने बाल्मीकि रामायण के अनुसार राम से कहा था

 कथयन्चन सा कार्या गृहीत धनुषा त्वया 

बुद्धिर्वैरम् विना हन्तुम् राक्ष्सानडण्डकाश्रतान ।। 

अतधर्मसंस्थापन के लिए राम आपको 

परित्रणाय साधूनाम् पर ही चलना चाहिए ।।


इस प्रकार तुम भी कह रहे हो कि

कथं भीष्महम् संख्ये द्रोणम्  मधुसूदन 

इषुभिप्रतियोत्साम पूजार्हावरिसूदन ।।

आततायी किन्तु पूजनीयों को हम क्यों मारें और वेदों में इसका विरोध कुल नष्ट होने में पितरों के सम्बन्ध में किया गया है 


तो वेदों मे पितरमार्ग एवं देवमार्ग जाने के रास्तों का ही मुख्यतउल्लेख है एवं मनुष्य योनि में देवों एवं पितरों का आह्वानहोम  अपनी सुखसुविधा , धन प्राप्ति एवं शत्रुदमन के लिए ही है भले ही वह शत्रु तुम्हारे अपने स्वजन  हों।।

तस्माद वै विद्वान पुरुषमिदम् ब्रह्मेति मन्यते 

सर्वा हि्यस्मिन्न् देवता गावो गोष्ठ इवासते ।।

इस प्रकार देवयज्ञ मनुष्य शरीर में स्थित इन्द्रियों के नियन्त्रण मे ही है  कि कर्मकाण्ड में ।।



सारांश के तौर पर तुम ऊपर दोनों प्रकार से कर्म बन्धन में पड़कर या तो पृथ्वी का राज्य भोगोगे या स्वर्ग का 


यह वेदों का सार तत्व नही है बल्कि उस परमात्मा का ध्यान करते हुए श्रद्धा युक्त हो ।।

वेदाहम् पुरुषम् महान्तम् आदित्यवर्णम् तमसपरस्तात् , तमेव विदित्वात् मृत्युमेति  ।।

के अनुसार कर्म पालन ही निश्चयात्मक बुद्धि  उपयोग है।

अतइस अनुसार कर्मफल आश्रयको छोड़कर अमृतऽश्नुम अथवा अमृतात का मार्ग पाने के लिए 

विनाशाय  दुष्कृताम् के मार्ग का अनुसरण करो ।।

क्योंकि

क्षेत्रक्षेत्रज्ञयोरेवमन्तरम् ज्ञानचक्षुषा 

भूतप्रकृतिमोक्षं  ये विदुर्यान्ति ते परम् ।।


यही कार्याकार्य की वेदास्त्र स्थिति है ।। 



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